शनिवार, 23 जनवरी 2016

जरसी में दरख़्त


आॅक्सफोर्ड से डिग्री लेने के बाद वह देश लौट आया था ।
मल्टीनेशनल कम्पनी के लाखों का पैकेज ठुकरा , जब फौज में जाने की बात की , तो ऐसा घमासान मचा घर में कि ... , लेकिन वह अपने फैसले पर अडिग था ।
माँ को कई बार कहते सुना था कि उसके पिता बतौर एक वीर सिपाही , युद्ध में दुश्मनों को दर्द देते हुए , दाँत खट्टे कर , उस चोटी को अपने कब्जे में लेकर , वहाँ झंडा फहरा दिये थे लेकिन , इलाज करवाने के लिए एंबुलेंस में सैनिक अस्पताल की ओर वैन रवाना होने पर , अपने ही किसी गद्दार द्वारा गोली से भून दिये गये ।
युद्ध के उपरांत , युद्ध के हालातों के लिये जिम्मेदार दो प्रतिनिधि जब गले लग रहे थे , उसी वक्त परिवार ने फौज की नौकरी करने के मामले में , अगली पीढ़ी पर अंकुश जड़ दिये ।
लेकिन , उसे फौज आवाज देती थी । आज मौका मिला है देश पर कुर्बान होने का । बाॅर्डर पर फिर से हमला जारी था और देश को उसकी जरूरत ।
" तु फौज छोड़ दे बेटा "
" माँ , तुझे आज एक चीज़ देता हूँ , शायद तुम समझ सको । यह लो ..." जेब से कागज़ का टुकडा निकाल बढ़ा दिया ।
" क्या है यह ? "
" पढ़ कर देखो ।"
" यह तो तेरे पापा की लिखावट है ! "
मेरे बेटे ,
तुम मेरे हाथ की बोई हुई बीज हो , तुम एकदिन देश की सुरक्षा करने वाला सुदृढ़ दरख़्त बनोगे
--- ठाकुर रणवीर सिंह ।
"कहाँ से मिला तुम्हें यह , मैने तो ....! "
" हाँ , तुमने तो पापा की जरसी में छुपा कर रखी थी ना !
बचपन में , तुम से छुपकर उस जरसी को पहनते हुए एकदिन मुझे ....."
माँ दोनों हाथों में उसके हाथ रख सिसक पडी । सामने उसका पति रणवीर सिंह उसी जरसी में खडा़ मुस्कुरा रहा था ।
कान्ता राॅय
भोपाल