शुक्रवार, 3 जून 2016

टूटते अंतराल की विवशता /लघुकथा



"क्या कहा तुमने अभी, अब तक शादी नहीं किये , लेकिन क्यों ? " आज अचानक उससे सामना होने , बातों के सिलसिला चलने पर वह अपनी उत्कंठा दबा नहीं पाई।

" मै तुम्हारे तरफ से वापस लौट ही नहीं पाया " वही सहज स्नेहिल स्वर महसूस किया उसने ।
" पर हमारा तलाक तो इसी बात पर हुआ था कि हमें अलग - अलग रह कर नया पार्टनर चुनना है । "
" हाँ , बात तो यही हुई थी ।"
" तो फिर "
" तुम्हें भूल नहीं पाया । आगे कैसे बढ़ता , बहुत प्यार करता हूँ , लौट आओ फिर से मेरे पास । "
उसके जुबान से कहे एक - एक अक्षर दावानल की तरह रमा के कलेजे में उतरने लगा । उसकी ओर ताका और आँखों को मुँद लिया ।
आज का यथार्थ , हाथों में पहनी नई - नई सुहाग की चूड़ियों की कसावट बढ़ने लगी । अतीत की चाह में अब वर्तमान से जूझ रही थी ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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