मंगलवार, 5 जुलाई 2016

विकास - यात्रा / लघुकथा



"ओ रे बुधिया , अब ये फूस हटाना ही पड़ेगा अपनी टपरी से "
" ई का कह रहे हो बुड्ढा , अब हम सब बिना छत के रहें का ? "
" नाहीं रे , कुछ टीन टपरा जोड़ लेंगे "
" काहे जोड़ लेंगे टीन-टप्पर , क्यु कहे तुम फूस हटाने को ?"
" खेत से आवत रहें तो गाँव के जोरगरहा दुई जन को कुछ कहते सुनत रहे , ओही से कहे है "
" का सुन लिये रहे हो ?"
" कहत रहे कि फुसहा घर गाँव के विकास में घोड़े के लीद पर उगे कुकुरमुत्ते के समान है । "


कान्ता राॅय
भोपाल

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