मंगलवार, 5 जुलाई 2016

सुरंग /लघुकथा /कान्ता रॉय


" माँ , आप तो चित्रा के बारे में जानती है सब कुछ , तो अब किस बात का संशय है? "
अभि के कहते ही उसने चित्रा की ओर देखा।
" हाँ , बहुत खूबसूरत है। इसमें मुझे मेरी खोई बेटी नजर आती है। "और भावातिरेक में बह गई।
" आँटी , मै चाय बना लाऊँ "
" नहीं , रहने दो ,मै बना लाती हूँ "
" आप तो रोज बनाती है।आज मै बना लाती हूँ ?"
मन भँवर में फँसा हुआ था । क्या करें ,होने दे जो होने वाला है। दायित्व-विहीन हो जाये । बेटे के व्याह का सपना ,बहू की पीली हथेली , वर्षों से आँखों के सामने नाचती थी। स्वप्न पूरा होने के लिए आज सामने हैै। इजाज़त उसे देनी होगी।
" अभि ,तू ऐसा कर ,बाज़ार से कुछ मीठा ले आ।" अचानक जैसे कुछ सूझ गया।
" आँटी , रहने दीजिये ना ! "
उसके हाथों को धीरे से दबा दिया। " जाने दे उसे , पढ़-लिख कर इतना बड़ा बन गया लेकिन अक्ल नाम का नहीं ! जा , मीठा लेकर आ ! "
वह झुँझलाकर सीढ़ियों की तरफ निकल गया।
" मै जानती हूँ कि तुम दोनों स्कूल के दिनों से दोस्त हो "
" जी , आँटी "
" कितना जान पाई हो अभि को अब तक ? "
" अभि ? वे एक बहुत अच्छे इंसान है। "
" सही कह रही हो। आजकल के लड़को के मुकाबले वह बहुत अच्छा है । शराब- सिगरेट कुछ नहीं पीता, आज तक कभी किसी लड़की को भी नहीं छेड़ा है। "
" जी , आँटी , मै उनसे बहुत प्यार करती हूँ "
" हाँ , तुम दोनों की नौकरी भी अच्छी है "
" जी, इसलिए तो हमारे विचार भी मिलते है "
" हाँ ,तुम दोनों के विचार मिलते तो है लेकिन एक बात है उसकी ..."
" क्या आँटी ,कौन सी बात ?"
" तुम उसके साथ विधिवत विवाह करो ,यह मेरा सपना था लेकिन मै नहीं चाहती हूँ कि तुम उससे बँध कर रहो । क्या तुम लिव - इन में नहीं रह सकती उसके साथ ? "
" क्याs ! आपने यह क्यों कहा , ऐसा तो आज तक किसी माँ ने नहीं कहा होगा " वह भयभीत- सी हो उठी। मानो सांप सूंघ गया था !
" सुनो , उसकी हाथ उठाने की आदत है । वह बात - बात पर , मुझ पर अक्सर हाथ उठा लेता है । माँ हूँ , सहना मेरी क़िस्मत है लेकिन तुम् ...."
" क्या कह रही है आप ? लेकिन वे तो आपसे बहुत प्यार करते है "
" हाँ , वो प्यार भी बहुत करता है मुझे ! इसलिए तो तुमसे कहती हूँ .. " कहते ही अचानक से पसली की हड्डियों में फिर से दर्द जाग उठा ।
--कान्ता रॉय ,भोपाल

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