बुधवार, 27 मई 2015

गरीबी का फोड़ा ( लघुकथा )


मजदूरी करके जितना भी कमाता , आधी से ज्यादा कमाई बेटे  के पढ़ाई के लिये लगाता ।
पिता के फर्ज़ से वह उरिन होना चाहता था ।
गरीबी , सदा जिंदगी को जटिल बनाने के लिये , अपना मोर्चा संभाले रहती थी  ।
बेटे  का मन पढ़ाई  में  कम और आस-पडोस के लडकों में  अधिक लगता था    ।
फिर भी पिता अपनी  आस को रबड़ के भाँति खींच कर पकडे़ हुए था , कि एक दिन बेटा बडा होकर उसका मर्म जान पायेगा और उसके दिन  फिर जायेंगे ।
आज दसवीं का रिजल्ट आने वाला था । सुबह से पूजा घर  में  माँ , बेटे की  सफलता के  लिए प्रार्थना में लगी हुई  थी ।  
रिजल्ट आया ।   सब जकड़न टुट गई  ।
बेटे  ने अपनी हार का ठीकरा पिता की  गरीबी पर जा फोड़ा  ।
गरीबी , कलेजे में  उगे  फोड़े के   मवाद की तरह  बह रही  थी । 

कान्ता राॅय
भोपाल


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