आप सभी की कथा पढ़ते समय मैंने तीन चीज़ कथा में बहुलता से प्रयुक्त होते देखी है।
1 . मैंने सोचा / उसने सोचा / ---- यानि ये सोचने वाली बात हमारी कथा सार्थक कथा में भी त्रुटि रोपित कर देती है। हम यहां क्षण विशेष को कहने की विधा में अपनी कोशिश कर रहे है जहां हमें किसी परिस्थिति का चित्रण उनकी विसंगतियों के साथ करना है। मन की बात जब बाहर आती है तो ही कथा बनती है। इसलिए / सोचा या सोचना / के उपयोग से बचने की कोशिश कीजियेगा।
2 . लेखक का लघुकथा में प्रवेश वर्जित है , यानि किसी भी क्षण विशेष पर लेखक का अपना वक्तव्य कथा में शामिल ना हो। बात हमेशा पात्रों के माध्यम से ही रखनी है कथा में। ऐसी कोई पंक्ति को जब भी कथा में प्रयुक्त करें तो स्वयं ही चेक करें की ये कौन कह रहा है ?
3 . लघुकथा भूमिका विहीन विधा है। यहां परिस्थितियां घटनाक्रम के रोपित होने से ही इंगित हो जाना चाहिए।
ये छोटी बातें हैं , लेकिन इन बातों से लघुकथा के सौंदर्य पर बहुत फर्क पड़ जाता है।
आप सबकी तरफ से इन् बातों से सम्बंधित प्रश्नों का स्वागत है।
कान्ता रॉय
भोपाल
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