पिछले कई दिनों से जब भी अपने बगीचे में जाता मन तिक्त हो उठता । बड़े ही जतन से उसने अपने बगीचे में ,रात की रानी और जूही की बेल लगाईं थी। साथ में मन मोहक गुलाब और बेला के झाड़ भी।
इन सबके बीच जाने कहाँ से एक कंटीला झाड़ बिना पोषित किये ही बढ़ उठा था। वह उसकी बढ़त से परेशान था ।
कई बार उसको काट कर हटाना भी चाहा , लेकिन हाथ बढाने से हमेशा पीछे हो उठता , कारण पिछले दिनों एक कंटीला झाड़ को हटाने के चक्कर में हाथों में ऐसे छाले पड़े कि महीनो डॉक्टर के चक्कर लगाने पड़े।
आज सुबह जैसे ही बगीचे में आया कि आँखें चौंधियाँ गयी।
" अरे , ये तो " पिनकुशन " निकला ! "
बागवान की नजरों में , अपने लिए मान देख " पिनकुशन " पूरे जोश में गुलाबी पुष्पों का गुच्छ लिए मोहक अंदाज में हठात जोर से खिलखिला उठा ।
कान्ता रॉय
भोपाल
भोपाल
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