शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

सत्य पर यकीन /लघुकथा




कलयुग अपने गति में सब पर बराबर नजर रख रहा था । इस बार भी पहले की तरह भक्त अम्बरीश के कई बार कहने बाद भी दुर्वासा ऋषि उनके अनुष्ठान के लिए वक्त नहीं निकाल पाए तो बुझे मन से ही आज उनको अनुष्ठान का आयोजन करना पड़ा।
अनुष्ठान के पश्चात उपस्थित समस्त संतजनों को भोजन करा कर निवृत हुए कि दुर्वासा ऋषि वहाँ उपस्थित हुए ।
दुर्वासा ऋषि को देखते ही अम्बरीश को मानो मन वांछित फल मिल गया और ऋषि दुर्वासा के चरण -पद की पूजा कर प्रसाद ग्रहण करने के लिए आग्रह किया तो " मैं जरा देर में वापस आता हूँ " , कहकर किसी जरूरी काम के लिए चले गए।
बहुत देर हुई दुर्वासा ऋषि नहीं आये । भक्त अम्बरीश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी चाहकर भी ऋषि दुर्वासा से कोई संवाद स्थापित नही हो पा रहा था ।
वक्त निकल रहा था । वहाँ उपस्थित अन्य सभी वरिष्ठजनों ने प्रसाद ग्रहण करने का काल के बीतने को अशुभ बता कर डराया तो वे चरणामृत लेकर पारणा के लिए तैयार हुए कि इतने में दुर्वासा मुनि प्रगट हो गए और क्रोधित होकर कहने लगे कि ,
" तुमने मेरा इंतज़ार ना करके अपमान किया है " और क्रोध के मारे भक्त अम्बरीश को जलाने के लिए एक राक्षसी को उत्पन्न किया।
अट्टहास करती राक्षसी भक्त अम्बरीश की तरफ लपकी , लेकिन बिना डरे शांत -भाव में भक्त अम्बरीश वही अडिग खड़े रहे।
भक्त अम्बरीश को अपने सत्य पर यकीन देखकर कलयुग अब चिंतित हो रहा था ।


कान्ता राॅय
भोपाल








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