बुधवार, 13 अप्रैल 2016

आदमी और थाली / लघुकथा


" गरीब आदमी अौर कुत्ता दोनों की हैसियत बराबर होती है । नामुराद , दुत्कार में जीने वाले " यूनिवर्सिटी से बाहर निकलते हुए सड़क के कोने पर भिखारी की तरफ देख उसका मुँह कसैला हो गया ।
" गरीब आदमी और कुत्ता , ये कैसी बराबरी हुई भला ! क्या बेहूदगी है ? " उसने अपनी कमीज़ को नीचे खींच , पेंट की जेब को ढकते हुए कहा ।
" देखते नहीं , कैसे खा रहे है जमीन पर , दोनों को सिर्फ अपना पेट भरने तक ही मतलब होता है , आक थू ! "
" आह ! क्या कह रहे हो ? अपने पेट तक तो , हम सब भी आज सिमट गये है , क्या राजा क्या रंक ! "
" मतलब , तुम कहना क्या चाहते हो ? " वह बिदक उठा ।
" मतलब यही कि मै तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूँ , आदमी चाहे गरीब हो , रहता वो आदमी ही है " उसकी नज़र खाना खाते हुए उस भिखारी के चेहरे पर जाकर अटक गई , मानों वह उसके चेहरे में किसी को ढूँढने की कोशिश कर रहा था ।
" चलो ,अब तुम साबित करो कि उस भिखारी में और कुत्ते में अंतर है ! " गरीबी से बेखबर अमीरी तमतमा कर रोष में आ गयी ।
" बहुत आसान है साबित करना " कहते हुए अपने जेब में ठूँसी हुई पिता के कर्ज़ को टटोल , सिहर उठा ।
" तो देर किस बात की , चलो साबित करके दिखाओ ! "
" वो खाने की थाली देख रहे हो "
" हाँ ,देख रहा हूँ ,सो ! "
" सिर्फ उस थाली ने भिखारी और कुत्ते में फर्क को कायम रखा हुआ है । "

कान्ता राॅय
भोपाल


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