बुधवार, 11 मई 2016

तमाशबीन / लघुकथा


वह अपने सीधेपन से असंतुष्ट होकर , करवट बदल , नया चेहरा अख्तियार कर रहा है । जब नाॅर्मल आदमी था तब वह भीड़ का हिस्सा हुआ करता था , लेकिन अब भीड़ का हिस्सा नहीं है ।

चरित्र में उग आये टेढ़ेपन की वजह से भीड़ में अलग , अपनी तरह का वह अकेला व्यक्ति है ।
पिछले कई दिनों से वह कूड़े - करकट का एक पहाड़ खड़ा करने में लगा हुआ था जो आज पूरा हो गया ।
उसके मुताबिक पहाड़ बहुत ऊँचा बना था । हाथ में एक झंडा लेकर उस पर चढ़ गया ।

कुछ लोग उसकी तरफ ताकने लगे। उसे देख कर लोगों के चेहरे पर सवालिया निशान उभरने लगे । धीरे -धीरे लोग सवाल बन गये ।
शलाका पुरूष .... मिथक पुरूष, ढोंगी इत्यादि अलग - अलग तरह के नामों से सम्बोधित कर , कुछ -कुछ कह , सवाल बने लोग अब अपने - अपने भीतर की तमाम गन्दगी उलीच रहे थे ।


कान्ता राॅय
भोपाल


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