शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

सामंजस्य /लघुकथा


"मेरे बेटे का मार्कशीट देखिये , 97 प्रतिशत लेकर आया है। इसके एडमिशन को कैसे मना कर सकते है आपलोग ?"
"अरे ,अरे, आप तो ऐसे बिफर रहे है कि हमने कोई नई बात की है !"
" नई बात तो की ही है आपने, मैं ऊपर तक इस बात को लेकर जाऊंगा ! "
"देखिये , ऊपर भी हम ही बैठे मिलेंगे सिस्टम में , कुछ नहीं होने वाला। आपके बेटे का साल ख़राब होगा और आपका वक़्त भी "
"क्या ?·····क्या कहा आपने ,ऊपर भी आप ही बैठे हुए है , ·····ओह ! कहिये फिर मुझे क्या करना होगा ? "

" आपके बेटे में प्रतिभा है इसलिए सिर्फ एक लाख पर ही आपके साथ सामंजस्य बिठा रहे है ,नहीं तो इसी सीट के हम 2 लाख तक चार्ज करते है। इतना सामंजस्य तो अब आपको भी बनाना ही पड़ेगा ! "

कान्ता रॉय
भोपाल

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