शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

संकल्प - एक व्यंग

" ओ बाबू , सुन ना ! मुझे नेता बनना है , " --पैर पटक - पटक कर भोलूआ आज जिद पर आन पड़ा । कम अक्ल होने के बावजूद भोलूआ अपने भोलेपन के कारण गाँव भर का दुलारा था ।
बापू तो सुनते ही चक्कर खा गया । बिस्कुट ,चाकलेट और मेले घुमाने तक के सारे जिद तो आसानी से पूरा करता आया था , लेकिन बुरबक , अबकी कहाँ से नेता बनने का जिद पाल लिया । सोचे कि चलो गुड्डे- गुडि़या वाला नेता बना देंगे । रामलीला वाले सुगना से नेता जी का ड्रेस माँग के भी पहिराय देंगे , लेकिन भोलूआ का जिद तो असली नेता बनने से है । अब का किया जाये !
थोड़ी देर बाद ही चौपाल पर सबको इकट्ठा किया गया । सबकी नजर मुर्झाये से भोलूआ के चेहरे पर पड़ी तो मन भर आया । गाँव भर को ही जैसे भोलूआ का नेता बनने की चिंता ने आ घेरा । अब भोलूआ को नेता तो बनाना ही पडेगा क्योंकि श्यामलाल जी , जो दुनिया भर की जानकारी रखते है उनकी बातों का कोई काट नहीं है , वे बोल दिये है कि नेता बनने का दौरा नेता बनने से ही जायेगा ।
भोलूआ ,आखिर पूरे गाँव का अपना दुलारा बच्चा है ,जैसे नंदगांव में कृष्ण हुआ करते थे ।
!
आखिर बच्चे की चाहत का सवाल है । अब यह नेता बने तो बने कैसे ? मिलकर तय हुआ कि धनुआ नाई के पास चला जाये । धनुआ नाई का नेता लोगों के दाढ़ी बनाने के लिये वहाँ रोज का आना -जाना है । इतिहास गवाह है कि नाई राज -रजवाड़ों के भी राजदार हुआ करते थे तो जरूर नेताओं के भी जरूर वह राजदार होगा । वही बतलायेगा कोई नया रास्ता ।
धनुआ अपने घर इतना भीड़ देख सकपका गया । एकदम से चिल्ला उठा , " ये नेता बनकर कहाँ घुस आये हो आप लोग ! "
" देखो वो नेता बोला , मुझे नेता बोला ,मै नेता जरूर बनूँगा ।" भोलूआ के उम्मीदों को मानों पंख लग गये ।
" अरे ,जहाँ भीड़ वहीं नेता ! आपके पास भीड़ तो आपका नेता बनना पक्का ! " -बापू भोलूआ के सिर पर हाथ फेर उम्मीद से सहला दिये ।
गाँववालों को मानों धनुआ नाई नहीं बल्कि पारस पत्थर मिल गया था , सब घेर कर उसको ध्यान से सुनने लगे ।
" लेकिन एक चीज़ की कमी आड़े आ सकती है आपके नेता बनने में ! " धनुआ गंभीर हो उठा।
" कौन से चीज़ की कमी...? " मुश्किल से सब्र रखे हुए सब एक साथ ही बोल उठे ।
" ध्यान से सुनो , यह बहुत राज की बात है । सभी नेताओं के पास यह होता है । जिस नेता के पास इसकी कमी होती है वो दुमकटा कहलाता है --" धनुआ फुसफुसा कर कहा ।
" हैss , दुमकटा ! नहीं , नहीं , मुझे दुमकटा नेता नहीं , अच्छा नेता बनना है ।" भोलूआ का धैर्य टूट रहा था ।
"अरे , पहली मत बुझाओ , का होना जरूरी होता है । हम सब ले आयेंगे । ईहाँ , लडका का प्राण निकल जायेगा , देर ना करो ,बताओ !" भोलूआ के बापू अधीर हो उठे ।
" अरे ,हम भी अधिक तो नहीं जानते है, लेकिन वे कोई " संकल्प " की बात करते है , कि नेता के पास जनता को दिखाने को कुछ हो ना हो, " भीड़ " और "संकल्प" , ई दुई चीज़ दिखाना बेहद जरूरी होती है । भीड़ तो आपके पास है ही बस संकल्प का जुगाड़ कर लीजिये। "
" ओ भगवानलाल ,इधर आ ,सुन , तुम कल तड़के ही शहर निकल जाना , चाहे जितनी भी महंगी हो , संकल्प खरीद कर ही लौटना । सुने है वहाँ शहर में पढे -लिखो के तबके में ,रोज संकल्प गढे जाते और बेचे जाते है । "
कान्ता राॅय
भोपाल

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