शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

मक्खन जैसे हाथ / लघुकथा


नई -नवेली दुल्हन सी वह आज भी लगती थी । आँखों में उसके जैसे शहद भरा हो । पिता की गरीबी नें उसे उम्रदराज़ की पत्नी होने का अभिशाप दिया था । उसका रूप उसके ऊपर लगी समस्त बंदिशों का कारण बना ।
उम्रदराज और शक्की पति की पत्नी अपने जीवन में कई समझौते करने के कारण कुंठित मन जीती है ।
आज चूड़ी वाले ने फिर से आवाज लगाई तो उसका दिल धक् धक धड़कने लगा । वह हमेशा की ही तरह पर्दे की ओट से धीरे से उसे पुकार बैठी , " ओ , चूड़ी वाले ! "
उसके मक्खन से हाथों में छुअन से होने वाले सिहरन का प्यार भरा एहसास देने वाले उस चूड़ी वाले का बडी़ शिद्दत से इंतजार किया करती थी ।
चुड़ीवाले ने हमेशा की तरह वहीं बाहर बैठ कर अपना साजों सामान पसार लिया । उसे मालूम था कि इस मक्खन जैसे हाथों वाली को सिर्फ हरे रंग की चूड़ियाँ ही अच्छी लगती है । पसारे हुए सभी चूडियों में धानी रंग की चूडियों पर पर्दे की ओट से मक्खन जैसे हाथों वाली की अंगुलियों ने इशारा किया ।
अब मक्खन जैसे हाथ, चुड़ी वाले के खुरदरे से हाथों में , देर तक , बेचैनी और बेख्याली के पल को जी रही थी ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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