शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

मवेशी /लघुकथा


" अरे , यहाँ आकर अब क्यों बैठ गया , क्या हुआ घर नहीं चलना है ? हो गया पटरियों को बिछाना आज , बाकी का अब कल पूरा करेंगे । "
" तु जा ,मै जरा देर में आता हूँ , वैसे भी कौन है अपना वहां ! खाने और सोने भर को ही तो ......"
" आज बहुत गम खा रहा है तू तो ,बता क्या हुआ है । "
" ठेकेदार इतनी दूर लाकर पटक दिया है मात्र पाँच हजार महीने पर । एक कमरे में दस लोगों को सोना और रहना पडता है । बोला था खाना और रहना फ्री । मै तो समझा था एक खोली देगा तो परिवार को भी यहीं बुला लूंगा ......, खैर , यह काम भी खत्म होने ही वाला है , फिर आगे क्या ! "
" आगे क्या , फिर दूसरी साईट पर भेज दिये जायेंगे "
" हाँ , भेज दिये जायेंगे दुसरे साईट पर , ठेकेदार के मवेशी जो ठहरे ! "


कान्ता राॅय
भोपाल

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