बुधवार, 13 अप्रैल 2016

गुमान का हश्र / लघुकथा


समभाव ,सम प्रकृति वाले दो खेतों के बीच अचानक एक मेड़ बना दिया गया । यह बदलते मौसम का असर था ।
मेड़ ऊँची , बहुत ऊँची होती जा रही थी । तरह - तरह की बातों की झाड़ियाँ उगने लगी खेत की छाती में । हवा भी गर्म हो चली थी ।
फसल का चोला डाल , कुछ गैर-प्राकृतिक तत्व खरपतवार की तरह चारों ओर बढ़ने लगे । खरपतवारों को अब अपने दिन फिरने पर गुमान हो रहा था । सुना तो था कि घूरे के भी दिन फिरते है मगर ऐसे फिरते है अब तक जाना नहीं था । वे इतराकर दिन-प्रतिदिन दुगुनी रफ्तार से बढ़ने लगे ।
बुवाई का समय नजदीक आने पर खेत मालिक खेत पर गया। उसने खरपतवार के मारे खेत का हाल-बेहाल देखा ,तो सहम गया ।
उसे अपने पिता की कही हुई बात याद आई कि “ कुत्ते का काटना और चाटना, दोनों ही अच्छाई के लिए हानिकारक है, ठीक वैसे ही ओछे व्यक्तियों से मित्रता और दुश्मनी । “
जरा भी देर ना करते हुए , खेत के मालिक नें खरपतवार की असलियत पहचान , उनमें आग लगवा दी । अब वे सब धू –धू कर जल रहे थे ।


कान्ता रॉय
भोपाल

                        

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