शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

भयानक सपने का सच / लघुकथा


राजमहल के साजिशों की शिकार , मखमली जिंदगी जीने वाली राजकुमारी को अचानक सूखे रेगिस्तान में अकेले मरने के लिये छोड़ दिया गया ।
वह आँखों में दहशत लिये अपने चारों ओर देख रही थी ।
चाँद ,तारों और परीकथाओं में अब तक जीने वाली को , किसी ने मरूभूमि की बातें नहीं बताई थी ।
जीवन की विषमताओं से यकायक सामना !
तीव्र प्यास की अनुभूति हुई , पानी की तलाश में उसने गर्म रेत पर चलने की कोशिश की। उसके कोमल पैर छालों से भर उठे । वह आकुल , व्याकुल सी इधर -उधर ताकती !
धूप से बेहाल उसका गुलाबी रंग भूरा होने लगा । पैर रेत में धँसने लगे । वह अब काली पड़ती जा रही थी और कुछ ही देर में , अपनी कमर तक , गर्म रेत में धँसी , छटपटा रही थी , प्राण निकलने के समीप था कि रेत के अंदर , गहरे तक धँसे पैरों में उसने नमी का संचार महसूस किया ,
नमी पाकर उसका काला रंग , हरे रंग में बदलने लगा ।
उसके पैरों के नीचे से संचारित नमी , उसके अंदर छाती तक को तृप्त करने लगी ।
गर्म तप्त रेत और हवा की मार से , धीरे - धीरे उसके हरे बदन पर नुकीले काँटे उगने लगे । वह अंदर से नम और बाहर से सख्त काँटेदार हो चुकी थी ।
मरूथल में उसका आस्तित्व जिंदगी पाकर , तेज , नुकीले कांटो का सरताज कैक्टस बन तप्त भूभि में , अब फूल खिला रही थी ।

कान्ता रॉय
भोपाल

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