शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

खुशी / लघुकथा

( मेरी पहली लघुकथा जो एक मॉल के चित्र को देखकर लिखी थी )

कुसुम खुशी -खुशी सीमित साधनों के साथ सुखी जीवन जी रही थी ।घर के पास वाली बाजार से हर जरूरत की वस्तु मिल जाया करती , लेकिन जाने कैसे आज बच्चे जिद पर अड़े हुए थे कि उन्हे माॅल जाना हैं और वहीं से कपड़े खरीदने हैं।
आखिर क्या करती , बेमन से ही सही , अपने बच्चों को लेकर पहुँच गई माॅल । इतना बडाss महल के समान ये दुकान ....! हिचकिचाहट से भर उठी , अब कैसे अंदर जाये ? बच्चे हाथ खींच अंदर कि तरफ तो ले आये ,पर सिर चकरा रहा था । अंदर हर तरफ दुकानों में रंग- बिरंगे कपड़े टंगे थे।
एक से बढ़ कर एक कपड़े , बच्चों नें शायद बहुत शोध कर लिया था ,इस माॅल के विषय पर ,इसलिए वे दोनों बेफिक्र हो सब कपड़ों को अपने पर आजमा रहे थे ।
मोनू ने अपने लिए सुंदर सा एक जींस लिया और एक टी-शर्ट ,खूब जँच रहा था । कुसुम एक टक निहारती हुई जैसे खो गई ,तभी पिंकी लाल फ्राक पहन सामने आई तो लगा जैसे कोई परी आसमान से उतरी हो ।
"चलो अच्छा ही हुआ जो इनके कहने पर आ गई " देर तक दुकानों में इधर -उधर करने के बाद वो बच्चों के साथ ही कपड़ों को लेकर बिल बनवाने के लिए लाईन मे लग गई । इंतज़ार में अकबकाई सी चारों ओर सबको देखती रही।
करीब आधे घंटे में बारी आई ।कम्प्यूटर से बिल निकाल कर कुसुम के हाथ मे दिया तो बिल पर नज़र पड़ते ही गश खाकर गिरते-गिरते बची ।
"अब क्या करूं , ये तो पूरे महीने भर की आमदनी के बराबर बिल है ! "
सुट पहने बिल बनाने वाला कर्मचारी पेमेंट में देरी करते देख कुसुम पर चिल्लाने लगा ।
जैसे -तैसे हिम्मत कर कुसुम ने कहा " मेरे पास तो इतने रूपये नही हैं "
सुनते ही कर्मचारी बौखला गया ।भीड़ की निगाहें अपनी ओर देखकर वो झेंप गयी। बहुत कहने -सुनने के बाद बिल कैंसिल हुआ । बच्चों के चेहरे उतरे हुए थे।
कुसुम पीला - सा चेहरा लेकर घर लौट आई ।
आज तक जिस मान -गुमान से वो जीती आई थी ,सब माॅल में जैसे गिरवी रख आई । पति का कमाया हुआ धन अचानक से कम लगने लगा था ।बच्चों के सामने गुनहगार सी , थोड़े से में ही खुश रहने वाली कुसुम की जिंदगी बदल चुकी थी ।

कान्ता रॉय
भोपाल


श्रीमती नीलम पुष्करणा जी के संग  सुख  से भरी मेरी एक आत्मीय पल का  संयोजन .



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