गुरुवार, 12 नवंबर 2015

क्या संवेदनाओं के खरीददार हो /कविता

कहने सुनने में तुम अक्सर
जाने क्या ढूंढा करते हो 
सरोकार क्या तुम्हें आंसुओ से
क्या आँसुओं के खरीददार हो ?
सोई जागी धुँधली आँखों में
सपनों की किरचन है बाकी
सरोकार क्या तुम्हें किरचनों से
क्या किरचनों के खरीददार हो ?
जलती सुलगती सी जिन्दगी
पर-उपकार विलुप्त सी रही
पर-उपकार क्या चर्चा वस्तु
क्या परोपकार के खरीददार हो ?
मान सम्मान के पैमाने
निराला जगत व्यवहार हुआ
सरोकार क्या तुम्हें व्यवहारों से
क्या व्यवहारों के खरीददार हो ?
आस लता-मंडप के छाँव की
संवेदनाओं की झुरमुट की
सरोकार क्या तुम्हें संवेदनाओं से
क्या संवेदनाओं के खरीददार हो ?
कान्ता रॉय
भोपाल

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