गुरुवार, 12 नवंबर 2015

मेरे मोहम्मद और मेरे नारायण/लघुकथा

अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी की तरह उसने लगभग गुर्राते हुए पुछा ,
 "आप ईदगाह में इन नमाज़ियों के बीच क्या कर रहे है "
" मैं यहां नमाज़ अदा फरमाने आया हूँ "
"क्यों , आप तो हिन्दू हो··· !"
"जी , मैं हिन्दू तो हूँ लेकिन मुझे एक बीमारी है। "
"बीमारी है तो डॉक्टर के पास जाओ , यहां क्या कर रहे हो ?"
" मेरी बीमारी का इलाज़ मेरे मोहम्मद और मेरे नारायण के पास ही है। "
"मेरे मोहम्मद और मेरे नारायण ········? चलो अब पहेलियाँ न बुझाओ , विस्तार से बताओ जरा "
" मैं जब पूजा करता हूँ तो मोहम्मद दिखाई देते है और नमाज़ पढता हूँ तो नारायण दिखाई देते है , इसलिए मैंने रमजान में मोहम्मद में वास करते नारायण के लिए रोज़े रखे है तो आज मैं उनका ही नमाज़ी हूँ। "


कान्ता रॉय
भोपाल

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