गुरुवार, 12 नवंबर 2015

बैकग्राउंड /लघुकथा


" ये कहाँ लेकर आये हो मुझे । "
" अपने गाँव ,और कहाँ ! "
" क्या , ये है तुम्हारा गाँव ? "
" हाँ , यही तो है हमारा गाँव ,
ये देखो हमारी बकरी और वो रहा मेरा भतीजा ।"
" ओह नो , तुम इस बस्ती से बिलाँग करते हो ? "
" हाँ ,तो ? "
" सुनो , मुझे अभी वापिस लौटना  है । "
" ऐसे कैसे ,वापस जाओगी ? तुम इस घर की बहू हो । बस माँ अभी खेत से आती ही होगी । "
" मै वापस जा रही हूँ । साॅरी , मुझसे भूल हो गई । तुम डाॅक्टर थे इसलिए ...."
" तो .... ? इसलिए क्या ? "
" इसलिए तुम्हारा बैकग्राउंड नहीं देखा मैने । "


कान्ता राॅय
भोपाल

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