मिटटी मैं नदी खेत की
पड़ी दबी थी कीचड़ सी
टोकरी में उठी उन हाथों से
जल सिंचन हो पोषित हुई
कोमल बनी ,मृदुल बनी
दो हाथों ने आज
क्या से क्या बनाया
झूमर बनी ,गुलदान बनी
मटकी , सुराही औ दीप-दान बनी
बाती संग जोड़ी बनकर
अँधेरों में रौशन हुई
महकती सी चमकती सी
जगमग हुई रौशनी बनी
मैं दीपक झिलमिल
तेरी हाथों साकार हुई
चाक तेरी चाकरी में
कुम्हारी रहे सदा सलामत
कुम्हारी रहे सदा सलामत !!!
कान्ता रॉय
भोपाल
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