लघुकथा लेखन के संदर्भ में कुछ ऐसी बातें जो लिखते समय मै स्वंय अनुभव करती हूँ ।लघुकथा लेखन के लिए सही कथानक का चुनाव बेहद जरूरी है । सही कथानक ही सार्थक लघुकथा के निर्माण की नींव होती है । गलत कथानक वक्त की बरबादी और निम्न स्तरिय कथा का कारण बनता है ।लघुकथा में सबसे जरूरी चीज़ होती है उसमें संदेश का होना । संदेश विहीन लघुकथा मान्य नहीं है । इसलिये लेखन करने से पहले जरा ठहरें और सोचें , कि हमें क्या लिखना है और क्यों लिखना है । इस कथा के माध्यम से हम क्या कहना चाहते है , और जो हम कह रहे है वो समाज के लिए हितकारी है या नहीं ।
इसके बाद जो जरूरी चीज़ है वो " कैसे कहना है " यानि की आपकी कथा का शिल्प कैसा हो । उसका प्रारूप कैसा हो । कथा विवरणात्मक शैली में हो या संवाद शैली में या दोनों का मिश्रण हो अर्थात मिश्रित शैली । वैसे मिश्रित शैली में बेहतरीन कथ्य उभरकर आता है ऐसा मेरा मानना है लेकिन ये कथानक से ही तय हो जाता है कि ये कथा कैसी लिखी जायेगी ।
कथा में पंच का प्रभाव कैसे आये ? ये प्रश्न अक्सर नवलेखकों को अंदर से बेचैन करता है । कई प्रश्न आये है इस से संबंधित कि पूरी कथा लिखने के बाद पंच पर ही अटक जाते है । अब मै यहाँ आप सभी को बेहतर पंच के लिए कुछ बातें बताऊँगी जो मेरे स्वंय के लेखन करते हुए मैनें अनुभव किया है । आप सबके लिये ये कितना लाभकारी साबित होगा, यह तो आपका आगामी लेखन ही तय करेगा । कह नहीं सकती कि मै कितना समझा पाने में सफल होऊँगी क्योंकि सीखने का मेरा क्रम भी अबतक जारी है ।
कथा की शुरूआत ऐसी हो कि पहली पंक्ति से ही पाठक के मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हो और धीरे - धीरे कथा अपने मध्यम भाग में स्पष्ट होते हुए यानि अपने सम्पूर्ण आकार में आगे बढें । अंतिम पंक्ति की प्रस्तुति चौंकाने वाली या सर जी ( पूज्यनीय योगराज प्रभाकर जी ) के अनुसार ततैये के डंक मारने जैसा प्रतीत हो । पढने के बाद देर तक उसी को सोचते रहें । यही होता है पंच का प्रभाव ।पंचदार कथा बनाने के लिए आपको कथा की पहली पंक्ति से ही सतर्क रहने की जरूरत होगी , तो ही सटीक पंच संभव होगा ।कई बार पंच के लिए विशेष तौर पर सोचना नहीं पडता है । कथा क्लाईमैक्स तक पहुँच कर स्वंय ही प्राकृतिक रूप से पंच कायम कर लेती है ।कथा की सही शुरूआत ही पंच का आधार होता है । आपका आखिरी पंक्ति का जिक्र पहले पंक्ति में नहीं होना चाहिए अर्थात आपके पंच का भेद नहीं खुलना चाहिए या बीच में भी उसका जिक्र नहीं होना चाहिए ।आपका कथ्य यानि संदेश आपके आखिरी पंक्ति पंच में ही ऊभर कर आना है । यह कथा लिखने से पहले की गई विभिन्न आयामों से चिंतन- मनन का ही परिणाम होगा ।
सर जी ( पूज्यनीय योगराज प्रभाकर जी ), अक्सर कहते है कि पहले कथा पर या जो कुछ लिखने जा रहे है उस पर मनन किजिए । १ से २ दिन तक चिंतन करें , पकने दें कथा को मन में पूरी तरह , यानि प्लाॅट तो दिमाग में आया है , लेकिन उसे किस तरह स्थापित करे कथा में , ये ही विशिष्ट लेखन का निष्कर्ष है ।प्लाॅट मिल गया और लिख लिये ,उसके बाद आप दस से पन्द्रह बार पढिये उसे , और देखिए बारम्बार कि क्या ये वही बात है जिसे आप बनाना चाहते है ?
अगर बार - बार किये गये प्रयासों के बाद भी कथा सही नहीं बनी प्रतीत हो तो उसे रद्दी में डाल दीजिये ,क्योंकि शायद इस प्लाॅट का चुनाव ही गलत हो गया होगा , क्योंकि सही और सार्थक निर्माण के लिये जमीन यानि प्लाॅट का सही होना बेहद जरूरी है ।सही प्लाॅट स्वंय ही सार्थक निर्माण का आकार ग्रहण करने लगता है अक्सर ।सादर अभिनंदन आप सभी को ।
कान्ता राॅय
भोपाल
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