गुरुवार, 10 मार्च 2016

गरीब -परमात्मा ( लघुकथा )


कलाई में बँधी घड़ी पर नजर पडते ही उसकी चाल तेज हो गई । स्कूल की छुट्टी हो गई होगी अब तक , पारूल राह देख रही होगी उसकी ।
अच्छी शिक्षा के लोभ में पारूल को काॅन्वेंट में पढाने की जिद उसकी ही थी लेकिन अब क्या ......!

ईला हमेशा से उसकी सच्ची दोस्त रही है । उसके मुंह से आज काॅन्वेंट में पढने वाले बच्चों के बिगडने की बात सुन वह पारुल के लिए चिंतित हो उठी ।
अंग्रेजी संस्कृति का हावी होना...... , उसका कहना भी तो सही है , हमारे बच्चों को रोज प्रार्थना में , प्रेयर के नाम पर जाने क्या , कौन सा पाठ पढाते होंगे ..... ? , कहीं किसी दिन क्राॅस ...... ओह !

बस अब आखिरी गली और स्कूल सामने ........ तेजी से डग भरने के कारण वह हाँफने लगीं ,लेकिन पारूल के भारतीय संस्कार ,घुंटाये गये अंग्रेजियत पर भारी पडने का डर ...वह एकदम से ठिठकी ,
" पारूलssss...! गेट के बाहर कैसे , और यह क्या कर रही है .......?" दूर से ही चिल्लाई ।
" बाबा को पानी पिलाने बाहर आई थी ......." माँ की क्रोध भरी नज़र , वह सहमते हुए रूआँसी हो उठी ।
" किसके कहने पर ...... ? " उसकी निगाहें अब तक उस वृद्ध के जुड़े हुए काँपती हाथों पर जाकर टिक गयी ।

" मैम ने कहा था कि गरीब लोगो में परमात्मा होते है , इसके फटे कपड़े .......यह भी गरीब है, मम्मी , मै तो परमात्मा को पानी पिलाने आई थी । "

कान्ता राॅय
भोपाल

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