बुधवार, 27 मई 2015

बुलडोजर ( लघुकथा )

बुलडोजर (लघुकथा )
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सुबह से ही अपने काम पर जाने की  हडबडी सबकी  .... आज गुम हो चुकी  थी  । बेजान सी  जिंदगी में  साँस अब भी कहीं बाकी था ...??? 

पानी का नलका ... पीपल के पेड़ तले चबूतरा ...वो लडकों की धमाचौकडी ... अब सन्नाटा ही सन्नाटा दूर तक ....!!!

रमा .. श्यामा .... राधा ... ललिता ... सबकी चुप्पी ...उनकी आँसुओं का दर्द  ...... शहर की छाती पर असर तो हुआ ही था ..... । 

पिछले महीने ही नोटिस भेज दिया था जगह खाली करने के लिये ।

शहर की आबोहवा के बदरंग होने का इल्ज़ाम उन्हीं के मत्थे चढा था ।
शहर क्या चाहती है ... किसको इसकी परवाह थी । 

क्या अपना घर अपने हाथों ही उजाड़ लेना संभव था ...!!!

" मत तोडो ...... मत तोडो । " -- विमला बेतहाशा भागी थी अचानक ....बुलडोजर के चपेट में आते हुए बाल बाल बची  थी । भोला ने एकदम से खींच लिया था उसे ।

बुलडोजर सिर्फ घर पर ही बल्कि जिंदगी पर भी सवार होकर  चली  थी  ।
कलपती हुई आँसुओं की आवाज कब बुलडोजरों ने सुनी है ...!!

कान्ता राॅय
भोपाल

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