मन तुम ठहर जाओ ( कविता )
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मन तुम ठहर जाओ
ना हो उद्वेलित
ना तुम अधीर हो
वो था वहीं
वो है जहाँ
मन झंकृत ना हो
हृदय गति
जरा धीर धर ले
जोगी जोग के
वेश धर ले
ले चिरन्तर गति
मन को कह
ना अब थिरके
ना उथल पुथल
कोई संसार हो
ज्वालामुखी की ज्वाला
निरंतर मन में लावा
बहते ही जाना
निरीह मन
व्याकुल पी बिन
अब तु अधीर ना हो
मन तुम ठहर जाओ
ना तुम अधीर हो
कान्ता राॅय
भोपाल
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