बुधवार, 27 मई 2015

मुंडन जिंदगी का (लघुकथा )

मुंडन जिंदगी का ( लघुकथा )

परम्परा के मुताबिक ही जनेऊ कर्म सम्पन्न हुआ । मुंडन के वक्त पीछे बडा सा बालों का गुच्छा छोड़ दिया गया । वो गिडगिडाता रहा कि मेरा पूरा मुंडन कर दो । ये बालों के गुच्छे मत छोड़ो  । स्कूल कैसे जाऊँगा ।
परम्परा थी .... वो एक जरूरी नियम था समाज के लिए ... धर्म के लिए ।

स्कूल गया बच्चा आज शाम तक घर नहीं पहुँचा ।  पहुँची तो उसका संदेश कि ट्रेन की पटरी पर जिस बच्चे की लाश मिली है उसके  स्कूल के  बस्ता के  डायरी में यही पता मिला है ।
बच्चे की जिंदगी का भी मुंडन हो चुका था

कान्ता राॅय
भोपाल

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें