मुंडन जिंदगी का ( लघुकथा )
परम्परा के मुताबिक ही जनेऊ कर्म सम्पन्न हुआ । मुंडन के वक्त पीछे बडा सा बालों का गुच्छा छोड़ दिया गया । वो गिडगिडाता रहा कि मेरा पूरा मुंडन कर दो । ये बालों के गुच्छे मत छोड़ो । स्कूल कैसे जाऊँगा ।
परम्परा थी .... वो एक जरूरी नियम था समाज के लिए ... धर्म के लिए ।
स्कूल गया बच्चा आज शाम तक घर नहीं पहुँचा । पहुँची तो उसका संदेश कि ट्रेन की पटरी पर जिस बच्चे की लाश मिली है उसके स्कूल के बस्ता के डायरी में यही पता मिला है ।
बच्चे की जिंदगी का भी मुंडन हो चुका था
कान्ता राॅय
भोपाल
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