मजदूरी करके जितना भी कमाता , आधी से ज्यादा कमाई बेटे के पढ़ाई के लिये लगाता ।
पिता के फर्ज़ से वह उरिन होना चाहता था ।
गरीबी , सदा जिंदगी को जटिल बनाने के लिये , अपना मोर्चा संभाले रहती थी ।
गरीबी , सदा जिंदगी को जटिल बनाने के लिये , अपना मोर्चा संभाले रहती थी ।
बेटे का मन पढ़ाई में कम और आस-पडोस के लडकों में अधिक लगता था ।
फिर भी पिता अपनी आस को रबड़ के भाँति खींच कर पकडे़ हुए था , कि एक दिन बेटा बडा होकर उसका मर्म जान पायेगा और उसके दिन फिर जायेंगे ।
आज दसवीं का रिजल्ट आने वाला था । सुबह से पूजा घर में माँ , बेटे की सफलता के लिए प्रार्थना में लगी हुई थी ।
रिजल्ट आया । सब जकड़न टुट गई ।
बेटे ने अपनी हार का ठीकरा पिता की गरीबी पर जा फोड़ा ।
गरीबी , कलेजे में उगे फोड़े के मवाद की तरह बह रही थी ।
गरीबी , कलेजे में उगे फोड़े के मवाद की तरह बह रही थी ।
कान्ता राॅय
भोपाल
भोपाल
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