ममता का सृजन (लघुकथा )
देवता, गंधर्व , किन्नर सब देवी की स्तुति गान कर प्रस्थान कर चुके थे । महिषासुर के साथ ही अन्य सभी दानव गण निष्प्राण हो रणभूमि में आच्छादित हो रहे थे ।
कुछ देर पहले ही जिस आकुलता से देवी ने मार गिराया था जिन दानवों को उन्हीं दानवों के लिए देवी हृदय में कोलाहल सा मच गया ।
देवी अब ममता के वशीभूत हो चली थी ।
समस्त सृष्टि की वो जननी थी ।देव हो या दानव ..... सब संतान उसी के ।
और पल भर में ही सृष्टि फिर दानवों के अधीन हो उठी ।
कान्ता राॅय
भोपाल
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें