शनिवार, 14 मार्च 2015

स्त्री शिक्षा ------- एक गहन विषय (चिंतन )


शारदा एक सरकारी दफ्तर में कर्मचारी है ।  उनकी तीन लड़की है । परिवार में बडे बुजुर्गों का बोलबाला है । सोलह साल की बडी लड़की की शादी तय कर दी गई । लड़की की माँ की मरजी जानने की जरूरत ही नहीं पड़ी ।
मेरे समझाने पर उसने घर में विरोध किया और उसकी लड़की अभी एम. बी.ए. कर रही है ।

स्त्री शिक्षा  नारी के आत्मसम्मान का प्रश्न है । नारी को खुद अपने जीवन के मायने को तय करना होगा  ।

नारी शिक्षा को लेकर समाज जागरूक अवश्य हुआ है , लेकिन सोच का स्तर में सुधार की अभी बहुत जरूरत है  ।

शहरों के अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में और निम्न मध्यम वर्गीय  लोगों में अभी बहुत जागरूकता की आवश्यकता बाकी है ।

मै अपने कार्य स्थल में विभिन्न महिलाओं से मिलती रहती हूँ  । मैने महिलाओं में स्त्री शिक्षा को लेकर सोच में बहुत भटकाव महसूस करती हूँ । मन आहत भी होता है ।

नारी शिक्षा के प्रति जागरूकता के कई सफल और बहुत से असफल प्रयास भी जारी रहता है मेरा  । सतत प्रयासरत रहती हूँ ।

लडकियों को सिर्फ इतना पढाना कि अच्छे घर में शादी हो जाये , सोच के इस स्तर पर मन में क्षोभ उठ जाता है ।
क्या सिर्फ शादी ही वजह होनी चाहिए स्त्री शिक्षा का ! .. उसकी आत्म निर्भरता क्यों नहीं ? --- क्यों शादी को ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य बना कर चलते है हम ?

क्या जीवन का पर्याय शादी , बच्चे और बुढापा तिरस्कार और फिर मौत का इंतजार । क्या बस यही जीवन का एक मात्र निर्रथक उद्देश्य ?

प्रश्न है यह उस समाज से  , जो सनातन से स्त्री दमन का पक्षधर रही है ।
एक परिवार  बसाना ही क्यों एकमात्र उद्देश्य निहित है सब मन में !
हम क्यों ना शिक्षा ग्रहण को समाज उत्थान का विषय बनाए , शिक्षा समाज में सेवा देने का विषय बनाये ।
जिस लडकियों की किसी कारण वश समय पर शादी नहीं हुई , उनको गुनहगार साबित करना , उसकी शारीरिक सुंदरता असुंदरता के लिए कुंठित होना ,क्या यह सही है ?

मै नहीं मानती कि एक अर्थ पूर्ण जीवन जीने के लिए शादी जरूरी है  ।
जिंदगी में शादी एक हिस्सा भर होना चाहिए  ,  शादी के लिए जिंदगी नहीं ।

शादी  -  परिवार ये वो बंधन है जो आपकी सामाजिक उत्थान के लिए सह भागिदारिता को रोकती है । प्रायः स्त्री सक्षम होते हुए भी सामाजिक उत्थान से जुड़ नहीं पाती कारण उसका परिवार के प्रति प्रतिबद्धता ।

परिवार सेवा का निर्वहन सदा से नारी करती आई है , इसलिए अब कामकाजी होने के बावजूद उसको अपनी प्रतिबद्धता कायम रखनी ही पड़ती है ।

आयुषी एक बहुत बड़े कम्पनी में मैनेजर है । खाना बनाने से बच्चे की परवरिश उसकी ही जिम्मेदारी है । सुयश हमेशा पुरूष होने का फायदा उठा कर अपनी जिम्मेदारी से बच निकलते है । कभी कुछ काम कर भी देते है तो उसका बखान करते नहीं अघाते ।

नारी जागरूकता का तो यह हाल है कि पढ लिख कर स्वंय स्त्री का मन पराधीनता स्वीकार करने को आतुर होती है ।

यह बिलकुल भी नहीं हैं कि परिवार से प्यार नहीं करो , लेकिन उस प्यार को इतना हावी मत होने दो की आप का अपना आत्म सम्मान ही ना बचें ।

पौरुष भावना कई बार स्त्री समर्पण को गुलामी के स्तर तक का दर्जा देने से भी नही चुकती  । मैने देखा है कि कई कामकाजी महिला अपना पूरा वेतन पति को दे देती है , और फिर जरा जरा सी खर्च के लिए पति की तिरस्कार सहती रहती है ।

स्त्री अपना प्यार सदा समर्पण बन कर लुटाती रही है और पुरूष सदा से दमनकारी रहा है ।
आज का पुरूष करता  तो है  बदलने की बात लेकिन सच्चाई अभी बहुत दूर है ।
पुरूष बेटी के मामले में जितना उदार हो जाता है उतना ही संकीर्ण पत्नी के लिए उजागर होता है ।

स्त्री को अपना सम्मान खुद कमाना होगा । शादी जीवन का पर्याय नहीं है यह समझना होगा ।
जीवन की उत्कृष्टता जीवन मुल्यों को समझने में है ।
" स्त्री जागो ! तुम शिक्षित बनो समाज के लिए !
तुम शिक्षित बनो देश उत्थान के लिए !
तुम शिक्षित बनो नारी सम्मान के लिए !
नारी में निर्माण की अद्भुत क्षमता है ।
अब तुम्हारी बारी है , अब तुम्हें साबित करना  है कि नारी जब भी उठती है नये निर्माण बनाती है ।

कान्ता राॅय

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Bhopal
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