शनिवार, 14 मार्च 2015

फैशन की रसोई ( लघुकथा )

" छनाक !! "

" फिर से क्या तोड़ डाला आपने मम्मी जी ? "

" बेटा , वो बाऊल हाथ से फिसल गया फिर से ..! "

" उफ्फ ! मम्मी जी आप तो मेरी डिलीवरी होने तक कुछ रहने ही नहीं देंगी । आये दिन बर्तन फोडती रहती हो । सारा सेट बिगाड़ कर रख दिया आपने ! "

रमा नये फैशन के बर्तनों से सजी  शीशे की रसोई में  बेहद घबराई  हुई   ,   स्टील के बर्तनों से सजी सौंधी सी खूशबू वाली अपनी पुरानी रसोई को याद कर रही थी ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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