शनिवार, 14 मार्च 2015

चौराहे की जिंदगी ( लघुकथा )

सिग्नल की लाल बत्ती जलते ही राधा पहुँच गई अपने ग्राहक की ओर । आँखों की आँखों से बात हुई और अगले ही पल वो गाड़ी में सवार थी  ।

जब से दिहाड़ी करने वाला पति नाले में मृत पाया गया था , राधा की किस्मत में चौराहे की जिंदगी नसीब हुई । दो जिंदगी को रोटी के लिए मोहताज देख माँ के पास दुसरा आसरा जो  नहीं था ।
" दीदी , भूख लगीं है । "

" माँ को आने दे लालू , वो खाना लेकर आयेगी । "

असहाय बच्चे रह रह कर उस रास्ते को निहारते जिस रास्ते पर वो गाड़ी वाला माँ को  लेकर गया  था  ।

दिन बीतने ही वाला था कि अचानक दूर वही  गाड़ी आती दिखाई दे गई । दोनों भाई बहन के चेहरे पर खुशियाँ ऐसे लौटी मानो जिंदगी मिल गई ।

" ये क्या ! "- दोनों अबोध सकते में थे ।

गाड़ी का दरवाजा खुला । निष्प्राण माँ को सड़क पर फेंका और गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गई ।
देश की एक और विडंबना सामने थी ।
देश का भविष्य बैठा रो रहा था और वर्तमान औंधा पडा़ था ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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