शनिवार, 14 मार्च 2015

हड्डी

अशोक के गैरहाजिरी में वो अचानक से  कभी भी  सुनिता के  घर धमक पडते थे ।
सुनिता को ना चाहते हुए भी उनकी खातिर करनी पडती थी । मजाक  के  रिश्ते का वास्ता देकर बदतमीजी भी कर जाते थे कई बार । बेटी के ससुर जो ठहरे ।

अशोक को कई बार चाह कर भी बता नहीं पाती थी । बेटी की खुशियों का ख्याल आ जाता था ।

दामाद जी अपने माता पिता के लिए श्रवण कुमार थे । बेटी से भी नहीं बाँट सकती थी अपनी परेशानी ।  सुनिता के  गले में दिन रात हड्डी फँसी रहती थी ।

आज जैसे ही दोपहर के नियत समय में घंटी बजी तो सुनिता ने बडे आराम से दरवाजा  खोला और उनको सप्रेम अंदर आने के लिए कहा ।

घर के अंदर बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे ।  उसने अपने घर में झूला घर खोल लिया था ।
सुनिता ने गले में फँसे हड्डी को निकाल फेंका था ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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