शनिवार, 14 मार्च 2015

कही -अनकही ( लघुकथा )


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"मम्मा मेरी " - कहते हुए आरूष गले से लग गया नेहा के ।

" क्या बात है मेरा बेटा आज बडा खुश है ! कहीं प्यार तो नहीं हो गया तुझे ? "-- कान खींचते हुए जब नेहा ने आरूष की ओर गहरी नजर से देखा तो वह शरमा  कर झेंप गया ।

"मम्मा  तुम भी ना ! क्या मै तुमसे वैसे ही गले नहीं लगता कभी ?" -- आरूष की चोर नजरों को  मम्मा पकड़ चुकी थी ।

" चल बता भी दें उसका नाम !  ज्यादा नखरे मत दिखाओ !  कहीं वो तेरी आॅफिस वाली मानसी आहूजा तो नहीं ? "-- नेहा मुस्कराहट के साथ पूछ रही थी ।

आरूष सोच रहा  था मम्मा को देखते हुए कि मम्मा कैसे  जान लेती है मेरी सारी कही अनकही बातें  ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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