शनिवार, 14 मार्च 2015

दुःस्वप्न

 

भयानक काली रात में वह बेड़ियों में जकड़ी हुई हताश और निराश के क्षणों में अपने प्रीतम को याद करती हुई मौत का इंतजार कर रही थी ।

इतनी घुटन इतनी अनंग पीड़ा उसने कभी महसूस नहीं की थी । सब कुछ खोने जैसा ही था । बिलकुल अचेतन शिथिल सी अवस्था से अचानक जैसे किसी ने जगा दिया ।

" अरे , मै यह कितना आनंद पल लग रहा है । कितनी हल्की महसूस कर रही हूँ । आशा निराशा से मुक्त मै अविनाशी  हो रही हूँ । ओह ! मै यहाँ तो नीचे जमीन पर मेरे जैसी कौन है ????

कान्ता राॅय
भोपाल

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