रविवार, 23 अगस्त 2015

.निरमलिया ( लघुकथा )

   
"मुझसे से शादी करना  चाहता  है रे तू ... ? " - सिर से जलावन का गठ्ठर उतारते हुए निरमलिया आज पूछ ही बैठी मोहना से ।
   
      "हाँ , तु मेरे  मन को पसंद है । जो कहेगी मै सब करूँगा तेरे लिए ....। " -- मैली सी धोती से पसीना पोंछते हुए झेंप कर मोहना का मुंह शर्म से लाल हो उठा था ।
    
      उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि निरमलिया सच में मान जायेगी ।
   
      "मुझे  तीन चीज़ तु दे सके जिंदगी भर के लिए   तो मै शादी करूंगी तुझसे । "
    "क्या ..क्या ...?"
    "गैस चुल्हा , मोबाइल और मुझे  एक फैसले का  हक  । "
    "ये सब क्या कह रही है रे निरमलिया ? "
    "देख रे मोहना , मुझे चुल्हे में स्वंय को नहीं झोंकना सुबह से शाम तक, इसलिए गैस चुल्हा चाहिए .... मुझे सबसे बात करने को मोबाइल चाहिए और मुझे बच्चे जनने की मशीन नहीं बनना.... इस वास्ते  मुझे  एक फैसले का हक   । "
    "बस इत्ती सी बात ..... देख मैने आज ही अरहर बेची है पच्चीस हजार की ... !
   
 कान्ता राॅय

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