रविवार, 23 अगस्त 2015

.महंगी मुस्कान / लघुकथा

" मुस्कान का व्यापारी हूँ । मुस्कान ही बेचता हूँ । कई प्रकार की मुस्कान है मेरे पास । "
" ये क्या बात हुई भला ..!!! मुस्कान का भी कोई व्यापार होता है  ! "
" होता है बाबू , आजकल मुस्कान भी बिकती है  । .... मुस्कान बडी ही महंगी चीज़ होती है । "
" अच्छा !! दिखाओ तो भला ... कितने प्रकार की मुस्कान है तुम्हारे पास ..??? "
" पहले जेब से पैसा निकालो , तुम्हारा जेब ही तय करेगा कि तुम पर कौन सा मुस्कान सुट करेगा । "
पढा लिखा बेरोजगार  भला क्या जेब में हाथ डालता .... दिहाड़ी करने लायक भी ना रहा था वो ।
महंगे मुस्कान  पर फीकी सी मायूस नजर  डाल वह आगे बढ़ गया ।


कान्ता राॅय 

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