सोमवार, 24 अगस्त 2015

विदाई तुम्हारी

आज तुम्हारी विदाई थी मेरे घर से आँखों के साथ दिल भी बहुत रोया था जाते हुए देर तक निहारती रही थी मै तुमको उम्मीद थी कि तुम जाने से इंकार कर दोगी अचानक से और मै गले से लगा कर रख लुंगी तुम्हें सदा के लिये मै निराश हुई तुमने पलट कर नहीं देखा एक बार भी लौटना मेरा मेरे ही घर में दुबारा तेरे बिना मुनासिब ना हुआ मैने भी छोड़ दी वो गलियाँ उन चौबारे को जहाँ तुम नहीं वहाँ अब क्या काम मेरा


कान्ता राॅय भोपाल

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