सोमवार, 24 अगस्त 2015

नींद से अटखेलियाँ

रात के सन्नाटे में गुँजती रहती है आँहे किसकी नींद में भरी सारी दुनिया सोती रहती है जाने क्यों मेरी ही आँखों से उसकी दुश्मनी कैसी नींद की मुझसे मेरी नींद से अटखेलियाँ रहती है लोग आते जाते हुए क्यों नही सुन पाते है क्यों मेरी ही कानों में ये अक्सर गुंजा करती है सारी दुनिया सन्नाटे में चैन से सोती है नींद की मुझसे मेरी नींद से अटखेलियाँ रहती है सहसा मुझे आज ऐसा लगा कहीं किसी दिल के कोने मे ये सिसकियां ये आँहे कहीं मेरे अंदर ही समाहित तो नही शायद इसलिए नींद की मुझसे मेरी नींद से अटखेलियाँ रहती है

कान्ता राॅय भोपाल

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