सोमवार, 24 अगस्त 2015

चाँद जल रहा है

देखो फिर चाँद जल रहा है फिर से तप रही है रात सितारों का क्या कसूर इसमे बिन जले जल रहे है आप आसमान में छाया कहर रो रही है चाँदनी देखो फिर चाँद जल रहा है फिर से तप रही है रात अक्षर अक्षर जले है मन विहराती बात आ जाओ कि अब नही कटती तुम बिन रात देखो फिर चाँद जल रहा है फिर से तप रही है रात सब जतन कर लिए सकूँ मिला ना कहीं तुम्हारे लिए बैठे रहे उसी राह तकते बाट देखो फिर चाँद जल रहा है फिर से तप रही है रात तुम भ्रम नहीं मेरे तुम सत्य अटल हो जिंदगी बिताऊँ अब अपने इसी भ्रम के साथ देखो फिर चाँद जल रहा है फिर से तप रही है रात

कान्ता राॅय भोपाल

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