रविवार, 23 अगस्त 2015

.शक -- एक कश्मकश / लघुकथा

तैयार होकर रीता आॅफिस के लिए निकलने ही वाली थी कि नील  कह उठे  कि आज  वो ही उसे आॅफिस छोड़ आयेंगें  ।
           उसे समझते देर ना लगी कि ,   आज फिर नील  पर  शक का  दौरा पड़ चुका  है  ।
         थे  तो वे  आधुनिक व्यक्तित्व के धनी ही । पत्नी का कामकाजी होना , उन की उदारता का परिचय था   ।  इसी  कारण वे  स्त्री विमर्श के प्रति   बेहद उदार मान  पूजे   जाते  थे  समाज  में ।
          
" मै चली जाऊँगी , आप  नाहक क्यों परेशान होते हो !   आपके  आॅफिस का भी तो यही वक्त है । " -  उसके आँखों में दुख से आँसू छलछला आये ।
           " क्यों  , तुम मुझे अपने आॅफिस के लोगों से दूर रखना  चाहती हो ..?   रात में विशाल का फोन आया था किसलिए ....? " --  नील   ने सहसा   चिल्लाकर कहा तो रीता की आँखों में  चिंगारी भर उठी  ।
         " तुम्हें शर्म आनी चाहिए , तुम मुझ पर फिर शक कर रहे हो ?   आज की  मीटिंग का  टाईम चेंज हुआ था  इसलिए फोन किया था बताने को  । "
            "चलो , आॅफिस पहुँचा दो मुझे । "-- बातों को तूल देने से अब  बचना चाहती थी वो  ।
          " नहीं , तुम चाहती हो कि मै दूर रहू तुम्हारे पुरूष मित्रों  से ...तो यही सही ,  रहने दो अब मै नहीं जाता तुम्हें पहुँचाने  । "
      " वो सहकर्मी है मेरे । "
  रीता का अब  दम घुटने लगा था । शक्की पति ... !  वो क्या करें ?
            नील  के बेइंतहा प्यार उसे आकंठ डुबो देता ,तो दूसरी ओर शक्की स्वभाव  उसके स्वाभिमान को अक्सर तार -तार कर जाता था।
            झगड़ा बढ़ने पर  वो तलाक़ के बारे में  भी सोचती  थी  ,  लेकिन पैर न उठते थे  कि बिछोह का गम  नील   सह नहीं पायेगें  .....  कहीं  कुछ हो गया उनको तो  ....!


कान्ता राॅय 

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