रविवार, 23 अगस्त 2015

बदरिया कहाँ गई

सावन की बुनझीसी सखी है तन में लगाए आग .......
बदरिया कहाँ गई
गोर बदन कारी रे चुनरिया ,सर से सरकी आज ......
बदरिया कहाँ गई
सावन भादों रात अंहारी थर - थर काँपय शरीर ......
बदरिया कहाँ गई
दादूर मोर पपीहा बोले कहाँ गये रणवीर .....
बदरिया कहाँ गई
अमुआँ की डारी झूले नर- नारी मैं दहक अंगार ....
बदरिया कहाँ गई
उमड़ उमड़े नदी जल पोखर तन में रह गई प्यास ......
बदरिया कहाँ गई
सब सखी पहिरय हरीयर चुड़ी मोरा कंगना उदास ......
बदरिया कहाँ गई
सावन पिया आवन कह गये कैसे नैहर जाऊँ .....
बदरिया कहाँ गई
जलथल - जलथल पोखर उमड़े मन में पडे रे अकाल ....
बदरिया कहाँ गई
सुध बिसरे मेरी प्रीत की प्रीतम सौतन घर किये वास ......... बदरिया कहाँ गई
तरूण बयस मोरा पिया तेजल भीजल देह लगे आग ......
बदरिया कहाँ गई
जग हरीयाली सगरे छाई मोरा मन सुखमास .......
बदरिया कहाँ गई
बेली चमेली करे अठखेली बरखा झींसी फुहार ......
बदरिया कहाँ गई
पिया जब आये आस पुराये सावन हुआ मधुमास .....
बदरिया आ ही गई
कान्ता राॅय
भोपाल

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