रविवार, 23 अगस्त 2015

.मक्खन जैसा हाथ /लघुकथा

नई -नवेली दुल्हन सी वो आज भी लगती थी । आँखों में उसके जैसे शहद भरा हो  । पिता की गरीबी नें उसे उम्रदराज़ की पत्नी होने का अभिशाप  दिया था ।
उसका  रूप उसके ऊपर लगी समस्त बंदिशों का कारण बना  । उम्रदराज और  शक्की पति  की पत्नी अपने जीवन में कई समझौते करने के कारण कुंठित मन जीती है ।
आज चूड़ी वाले ने फिर से  आवाज लगाई तो उसका  दिल धक्क से धडक  गया । वो हमेशा की ही  तरह पर्दे की ओट से धीरे से  उसे पुकार बैठी , " ओ ,  चूड़ी वाले !  "
उसके मक्खन से  हाथों में  ...छुअन से होने वाले   सिहरन का  आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का वो बडी़ शिद्दत से इंतजार किया  करती थी ।  
चुड़ीवाले ने हमेशा की तरह वहीं बाहर बैठ कर अपना  साजों सामान पसार लिया । उसे मालूम था कि इस मक्खन जैसे हाथ वाली को सिर्फ हरे रंग की चूड़ियाँ ही अच्छी  लगती  है ।
पसारे हुए सभी चूडियों में  धानी रंग की चूडियों  पर पर्दे  की ओट से मक्खन जैसी  हाथ वाली की अंगुलियों ने इशारा किया ।
कुछ ही पल  में  मक्खन जैसे  हाथ ....चुड़ी वाले के खुरदरे से  हाथ में ...देर तक   ...बेचैनी और बेख्याली के पल को ..जीते   रहे ।



कान्ता राॅय 

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