सोमवार, 24 अगस्त 2015

कोलकाता

तुम मेरी प्यारी कोलकाता कितनी खूबसूरत हो तुम तुमसे मुझे प्यार कितना मेरी साँसों में ख्यालों में तेरे सिवा कोई और ना उतरा देखे मैने कितने शहरों को देखे कितनी ही राजमहल तुम तो बस तुम्ही हो मेरी प्यारी कोलकाता तुम में बसी है विक्टोरिया की आत्मा खिदीरपूर डक का सम्मोहन ना पाया कहीं और कालीघाट की प्रांगण जैसा कहीं नहीं है ठौर वो पिकनिक के दिन होते थे दुर्गा पूजा की रातें दिवाली की फाटक स्ट्रीट की सुसज्जित काली पूजा यादों में वो काॅलेज स्ट्रीट की गलियाँ काॅफी हाऊस में बैठ कर की है कितनी रंगरलियाँ दोस्त दोस्ती की मिशाल है कोलकाता अड्डा मारने की सहूलियत और मिलेगी कहाँ वो आलूर चाॅप वो बेगून भाजा वो पूजा पंडाल का खिचूडी और आलूर दम कहाँ धर्मतल्ला के मैदान में फुचके वाले का स्वाद राममंदिर की पावभाजी और मिलेगी कहाँ झाल मुड़ी के झाल में खोया आज भी मेरा प्यार मानिक तल्ला सियाल्दा में ढुंढु बारम्बार तुम मेरी प्यारी कोलकाता तुमसे मुझे है प्यार

कान्ता राॅय भोपाल

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