होली बीत गई
रीत गई सपने सारे
मेरे साजन अंग ना लगे
पी की आस को मन तरसे
निराश हुए जग सारे
रंग अबीर सब हुआ फीका
कैसी होली
कैसी हमजोली
मुझसे जो साजन बिछुड़े
तुम गये सपने गई
गई सब सुनहरी धुप
तुममें मै ऐसी खोयी
बाकी रहा ना रूप
तुममे ही मै रहती थी
मुझमें तुम ही तुम थे खोये
सागर से नदियाँ मिलती है जैसे
मै मिलती पिया से ऐसे
तड़प तडप मै रैन गुजारू
तुम बिन जीवन जीयुँ कैसे
तुम गये सपने गये
गये सब सुनहरी धुप
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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