सोमवार, 24 अगस्त 2015

होली

होली बीत गई रीत गई सपने सारे मेरे साजन अंग ना लगे पी की आस को मन तरसे निराश हुए जग सारे रंग अबीर सब हुआ फीका कैसी होली कैसी हमजोली मुझसे जो साजन बिछुड़े तुम गये सपने गई गई सब सुनहरी धुप तुममें मै ऐसी खोयी बाकी रहा ना रूप तुममे ही मै रहती थी मुझमें तुम ही तुम थे खोये सागर से नदियाँ मिलती है जैसे मै मिलती पिया से ऐसे तड़प तडप मै रैन गुजारू तुम बिन जीवन जीयुँ कैसे तुम गये सपने गये गये सब सुनहरी धुप

कान्ता राॅय भोपाल

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