_________________
हृदय मेरा चंचल हुआ
प्रेम पिया संग अचल हुआ
सिंधु लहरों का डेरा मन में
नीरवता का देहावसान हुआ
हृदय मेरा चंचल हुआ ....
तुम ही जीवन तत्व मेरे हो
तुम सागर मन नदी हुआ
तुम पत्थर सरीखे प्रिय
मेरा कातर मन द्रवित हुआ
हृदय मेरा चंचल हुआ .....
जीवन की यह मर्म वेदना
स्वप्न टुट कर बिखड गया
अमर दीप प्रीतम नाम की
यह पुण्य प्रीत तेरे नाम हुआ
हृदय मेरा चंचल हुआ .....
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें