मेरा दिल बार बार
क्युं ऐसा कहता हैै कि
अकेली सिर्फ मै ही नही
तुम भी हो गये हो मेरे बगैर
तुम नही समझते
खुद अपने ही मन की बात
कैसे समझोगे
तुम्हारा मन तो
मेरे पास ही है कब से
तुम मारे मारे फिरते हो
ढुढने के लिए
तुम भूल गये कि
एक दिन बातों बातों में
मुझे ही सौंप गये थे
तुम अपने मन को
तुम्हारा इस कदर
मचल जाना बातों बातों में
मुझे बहुत याद आते हो
तुमसे इतना प्यार
कर लिया कि
नफ़रत करना
मेरे वश में नही
करते हो सदा मुझे परेशान
मेरे यादों में आकर तुम
अब तुम ही बताओ कि
तुम्हारी यादों का
मै क्या करूं
कहाँ छोड़ आऊँ कि
तुम लौट कर
कभी ना आओ
कौन सी वह जगह है
जहाँ तुमने
मेरी यादों को छोडा है
मुझ पर आखिरी
यह एहसान करना
मुझे भी उस जगह का
पता देते जाना
छोड़ आऊँ मै भी वहीं
तुम्हारी यादों को ले जाकर
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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