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एक वृक्ष के शाखे हम
बढते गये
बहुत ऊपर तक
फुनगीयों से फुनगियाँ
निकलती गई
बहुत दूर पहुँच गये
ऊपर तक हम
होश आया अचानक
देखा जडों से बहुत दूर
निकल आये थे हम
लौट कर मिट्टी तक
पहुँचने की अब
दरकार आन पडी थी
अपनी ही टहनियों से
सरकते हुए वापस
नीचे उतरना था
उतरते वक्त सारे
छूटे हुए अपने
मेरी ओर ही
ताकते नजर आये
देर तो हुई लौटने में
इसका अफसोस
अब उम्र भर
साथ ही रहेगा
लेकिन उनका क्या
जो इंतजार में मेरे
मिट्टी में मिल गये
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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