देखो फिर चाँद जल रहा है
फिर से तप रही है रात
सितारों का क्या कसूर इसमे
बिन जले जल रहे है आप
आसमान में छाया कहर
रो रही है चाँदनी
देखो फिर चाँद जल रहा है
फिर से तप रही है रात
अक्षर अक्षर जले है
मन विहराती बात
आ जाओ कि अब नही
कटती तुम बिन रात
देखो फिर चाँद जल रहा है
फिर से तप रही है रात
सब जतन कर लिए
सकूँ मिला ना कहीं
तुम्हारे लिए बैठे रहे
उसी राह तकते बाट
देखो फिर चाँद जल रहा है
फिर से तप रही है रात
तुम भ्रम नहीं मेरे
तुम सत्य अटल हो
जिंदगी बिताऊँ अब
अपने इसी भ्रम के साथ
देखो फिर चाँद जल रहा है
फिर से तप रही है रात
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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