सावन की बुनझीसी सखी है तन में लगाए आग .......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
गोर बदन कारी रे चुनरिया ,सर से सरकी आज ......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
सावन भादों रात अंहारी थर - थर काँपय शरीर ......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
दादूर मोर पपीहा बोले कहाँ गये रणवीर .....
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
अमुआँ की डारी झूले नर- नारी मैं दहक अंगार ....
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
उमड़ उमड़े नदी जल पोखर तन में रह गई प्यास ......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
सब सखी पहिरय हरीयर चुड़ी मोरा कंगना उदास ......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
सावन पिया आवन कह गये कैसे नैहर जाऊँ .....
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
जलथल - जलथल पोखर उमड़े मन में पडे रे अकाल ....
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
सुध बिसरे मेरी प्रीत की प्रीतम सौतन घर किये वास ......... बदरिया कहाँ गई
तरूण बयस मोरा पिया तेजल भीजल देह लगे आग ......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
जग हरीयाली सगरे छाई मोरा मन सुखमास .......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
बेली चमेली करे अठखेली बरखा झींसी फुहार ......
बदरिया कहाँ गई
बदरिया कहाँ गई
पिया जब आये आस पुराये सावन हुआ मधुमास .....
बदरिया आ ही गई
बदरिया आ ही गई
कान्ता राॅय
भोपाल
भोपाल
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