रविवार, 23 अगस्त 2015

आसमान को नापना ही होगा

जागी थी आज मै
चौंक उठी थी सहसा
कई कामों के संग ही
एक काम और रह गया
बहुत दिन हुए सोचे
आसमान नाप कर देखू
सुना है नील गगन
यह अति अनंत है
लेकिन अनंत में भी तो
छुपा हुआ होता एक अंत है
कहते है , किसी ने ना किया जो
मै बावरी भी ,ना करूं वो
छोड़ दू जिद
हो सकता है
कोई ना कर पाया जो
मै ही कर बैठू वो
क्यों बिना किये ऐसे छोड़ दू ,
अपने मंजिल का रास्ता मोड़ दू
उठा कर इंजी टेप मैने
पूरे होशोहवास में अपने
आसमान की ओर जो देखी
ये क्या !
मुझे तो बेहद सिमटी सी लगी
ये मेरी नजरों का धोखा हो
धोखा ही सही
उसका सिमटना मुझे भा गया
ऐसा लगा मानो
वो मुझे बुला रहा है
वो नील गगन
मुझे बुला रहा है
मै अब और ना ठहर पाई
पडोस से सीढ़ी उठा लाई
लगा दिया मैने आसमान में
और चढ़ बैठी
जा पहुँची चंदा तक
चंदा ने पूछा, तेरी बिंदिया कहाँ है ?
मैने कहा , उतार आई
बिंदिया भी , मंगलसूत्र भी
कहीं ये चमक जाती आसमान में !
कही ये उलझ जाती गरदन में !
मैने चुड़ी भी देखो उतार दी है
तारों की नजर ना पड़ जाये
आसमान को नापते हुए
पायल की छनछनाहट में
ध्यान टूट सकता है
आसमान की गिनती
इंची टेप नापने में
बहुत कुछ छूट सकता है
आसमान नापना हो जायेगा
मेरा लौटना भी हो जायेगा
पहन लूँगी सारे आभूषण
जो पिता ने रिश्तों में
जकड़ते हुए जड़ दिये थे मेरे अंगों में
सब पहन लूँगी
पहले यह काम तो कर लू
आसमान को जरा नाप लू
देखो मै नाप रही हूँ
नपते- नपते बढ़ रही हूँ
कितना सारा नापा है
और नापूँगी इसे
जब तक दम है
नापती ही रहूँगी
मेरे कदमों के निशां पर
चलने वालों के लिये
यह सिलसिला
देकर जाऊँगी
ये इंची टेप भी
दे जाऊँगी
मेरे मरने के बाद भी
आसमान नापने का
क्रम ना टूटे
यह अनवरत युँ ही
हाथों से हाथों तक
सदियों से सदियों तक
बढती रहे ,
वो भी अपनी
चुडी पायल बिछुए
बिंदी मंगलसूत्र
घर पर ही छोड़ जाये
आसमान को नापते वक्त
कोई उलझन ना होने पाये
देखना एक दिन
यह पूरा आसमान
नप जायेगा
मुझे यकीन हैै
एक दिन यह आसमान
नपा हुआ पाया जायेगा ।
कान्ता राॅय
भोपाल

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